Friday, June 1, 2012

बीजेपी का दोहरा चरित्र

बुधवार(30 मई) को भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के नेतृत्व में पार्टी नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुजरात की राज्यपाल कमला बेनीवाल को वापस बुलाने की मांग को लेकर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील से मुलाकात की . बीजेपी का आरोप है कि बेनीवाल ने राजस्थान में 600 करोड़ रूपए की कृषि भूमि पर कब्जा कर रखा है.प्रतिनिधिमंडल ने अपने मांग के समर्थन में राष्ट्रपति को कुछ दस्तावेज भी सौंपे हैं जिसमें उन्होंने जयपुर के सहकारिता रजिस्ट्रार कार्यालय द्वारा 2 मई को जारी आदेश के बारे में उन्हें जानकारी दी.

गडकरी ने कहा कि सहकारिता रजिस्ट्रार ने कहा है कि राजस्थान सरकार की 1000 करोड़ रूपए की जमीन को हड़पने के लिए राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल किया गया है.बेनीवाल ने इस जमीन के एक हिस्से पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है.हालांकि, कमला बेनीवाल का दावा है कि वे और सोसायटी के अन्य सदस्य पिछले 58 साल से इस जमीन पर 16 घंटे कृषि श्रम कर रहे थे. वहीं रजिस्ट्रार ने अपने आदेश में इस दावे को गलत ठहराया है.

गडकरी ने कहा कि जबतक बेनीवाल राज्यपाल हैं तबतक राजस्थान सरकार उनपर मामला दर्ज नहीं कर सकती है, लिहाजा बीजेपी ने राष्ट्रपति से मांग की है वे कमला बेनीवाल को पद से हटाने का आदेश दें ताकि जमीन पर कब्जे के मामले की जांच पूरी हो सके.

अब सवाल ये उठता है कि यही भाजपा, यही स्टैंड गुजरात के सन्दर्भ में क्यों नहीं उठाती है.जहां, साल 2002 में हुए गोधरा में ट्रेन को जलाने (जिसमें 59 लोग जिन्दा जल गए थे) के बाद भड़के साम्प्रदायिक दंगों में 2000 से ज्यादा मुसलमान भाईयों को अपनी जान गवानी पड़ी थी. यदि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते तो इतने बड़े पैमाने पर हुए खून खराबे को रोका जा सकता है .मगर उन्होंने इन दंगों को रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किए.

बीजेपी ने जो मांग राष्ट्रपति से बेनीवाल के सम्बन्ध में की है, वही पैमाना वह मोदी के लिए क्यों नहीं अपनाती है? क्या यह संभव है कि मोदी के पद पर रहते गुजरात में दंगों से सम्बंधित कोई भी जांच निष्पक्ष रूप से चल सके? मगर बीजेपी मोदी को दंगों के लिए दोषी नहीं मानती है.यही भाजपा के दोहरे चरित्र को उजागर करता है. एक तरफ तो वह यह मानती है किसी व्यक्ति के पद पर रहने से उसके खिलाफ निष्पक्ष जांच नहीं चलाई जा सकती है,मगर यही बात वह गुजरात के सन्दर्भ में लागू नहीं करती है. किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई आरोप लगता है और मोटे तौर पर यह लगता है कि मामले में उस व्यक्ति की संलिप्तता है, तो ऐसे में उस व्यक्ति को पद से हटा दिया जाना चाहिए तभी उसके खिलाफ जांच बिना भेदभाव के चल सकती है.

आम जीवान में भी किसी सरकारी दफ्तर में किसी के खिलाफ गम्भीर आरोप लगने पर पहले उस व्यक्ति को निलंबित कर दिया जाता है उसके बाद ही उसके खिलाफ जांच शुरू होती है.मगर बीजेपी दोहरे चरित्र की शिकार है. वह करती कुछ और कहती कुछ और है.