Thursday, June 23, 2011

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की प्रासंगिता


रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने अपनी मौद्रिक नीति की  मध्य तिमाही समीक्षा में एक बार फिर  नीतिगत दरों में  इजाफा किया है. रेपो रेट में चौथाई फीसद की बढ़ोतरी की है तो रिवर्स रेपो रेट में भी इतने ही फीसद का इजाफा किया है..इसे मिला कर  पिछले  साल मार्च 2010 से लेकर अब तक रिजर्व बैंक 10 बार अपनी ब्याज दरों में वृद्धि  कर चुका है. इस वृद्धि के साथ रेपो रेट अब 7.50 फीसद हो गया है और रिवर्स रेपो रेट 6.5 फीसद हो गया है.रिजर्व बैंक ने बाकी दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की है.


यह पहले से तय था की रिजर्व बैंक अपनी ब्याज दरों में चौथाई फीसद का इजाफा कर सकता है बाजार विशेषज्ञ भी इतने ही फीसद बढ़ोतरी का अनुमान लगा रहे थे. सो यह बाजार के अनुमान के अनुसार ही रहा.  इस बढ़ोतरी के साथ ही  आवास लोन और ऑटो और अन्य लोन मंहगे हो
 जाएंगे.


वाणिज्यिक बैंकों का भी मानना है की इससे उत्पादन लागत बढ़ेगी और बैंक ग्राहकों को कम ऋण उपलब्ध करा पाएगी. और देर सबेर बैंक भी अपनी  ब्याज दरें बढ़ाने को मजबूर हो जाएंगे.  अर्थशास्त्री और बाज़ार विशेषज्ञ इस वृद्धि से खुश नहीं है, उनका मानना  है कि इससे औधोगोक विकास की दर धीमी होगी .हालांकि रिजर्व बैंक ऐसा नहीं मानता है, बैंक का मानना है कि बेलगाम होती महंगाई  दर को  और बढ़ने से रोकने के लिए नीतिगत दरों में वृद्धि ही एकमात्र रह्स्ता रह गया था.


गौरतलब है कि इस हफ्ते खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर में मामूली कमी दर्ज  की गई है पिछले हफ्ते  यह 9.01 फीसद  पर थी  और अब यह 8 .96  फीसद पर पहुच गई है. वहीँ सकल थोक  मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर मई महीने में 9.06 के स्तर पर   पहुंच गई  है.


सवाल यह है कि रिजर्व बैंक के लगातार महंगाई दर को नियंत्रित करने की सारी कवायद क्यों नहीं काम कर पा रही है दूसरा क्या रिजर्व बैंक के पास महंगाई दर को काबू में रखने के लिए सिर्फ  नीतिगत दरों में इजाफा या घटाने के सिवा और कोई  उपाय नहीं रह गया है ? जबकि रिजर्व बैंक ने पिछले महीने  3 मई को  सालाना मौद्रिक नीति की  घोषणा करते हुए कहा था कि सिर्फ नीतिगत दरों में कमी या बढ़ोतरी करने से महंगाई दर को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार को कुछ और उपाय करने होंगें


फिर बार- बार रिजर्व बैंक इसी नीति को अपनाने को क्यों मजबूर हो जाता है ? यह  भी एक सच्चाई है कि पिछले एक साल से रिजर्व बैंक की मुद्रास्फीति   दर को काबू करने की  कोशिश ना काफी साबित हुई है और यह अब भी चिंताजनक स्तर पर बनी हुई है.  रिजर्वे बैंक चाहता है की महंगाई की दर 5 से 6 फीसदी तक रहे. पर ऐसा निकट भविष्य हो होता नज़र नहीं आता है. कारण सरकार फिर ईंधन के मूल्यों में वृद्धि करने का मन बना चुकी है. 


अगर ऐसा होता है तो महंगाई का एक  बार फिर बढ़ना तय है और इसका असर लंबे समय  तक रहेगा.


दरअसल अब रिजर्व बैंक की मुद्रास्फीति की दर को काबू में रखने के लिए सिर्फ मौद्रिक नीति को बढ़ाने या घटाने से काम नहीं  चलेगा अगर सरकार को मुद्रास्फीति की लगाम कसके रखनी है तो दोनों को मिल कर इस दिशा में काम करना होगा.


महंगाई बढ़ने के कारण स्थानीय होते है. महंगाई  दर को बढ़ाने में सबसे अधिक भूमिका खाद्य पदार्थ निभाते हैं. भारतीय अपनी आय का एक बहुत बड़ा भाग खाने पीने पर खर्च करते है.हम बहर्तियों के लिए भी महगाई का मतलब खाद्य पदार्थों में वृद्धि से ही होता है.


एक तरफ तो   खाद्य पदार्थों की मांग और आपूर्ति में बहुत बड़ा असंतुलन है तो दूसरी तरफ सरकार ईंधन के दामों में पिछले एक साल से लगातार वृद्धि करती जा रही है  जिसके कारण भी महंगाई दर लगातार उंची बनी हुई है सरकार के इंधन के दामों में वृद्धि करते ही दूसरे सभी खाद्य और अखाद्य पदार्थों में स्वतः वृद्धि हो जाती है.यहीं पर सरकार को अपनी प्रभावी  भूमिका निभाने की जरुरत होती है.पर सरकार इस स्तर पर कुछ ख़ास नहीं कर पाती है लिहाजा दाम बढ़ाने में स्थानीय कारक जैसे माल भाड़े में वृद्धि, वस्तुओं की कालाबाजारी इत्यादि  हावी हो जाते है और फिर जब रिजर्व बैंक की महंगाई की दर को नियंत्रित करने के लिए उठाई  गई सारी कवायद बेकार साबित  होती है. और
 महीने डेढ़ महीने बाद रिजर्व बैंक को एक बार फिर से अपनी ब्याज दरें बढानी पड़ती है


कम से कम पिछले एक साल से तो यही देखने में आ रहा है.


महंगाई दर को उचित  स्तर पर बनाए रखने के लिए यह जरुरी है कि   सराकार और रिजर्वे बैंक मिलकर काम करें. एक बार ब्याज दर बढ़ने  पर यह सरकार की जिम्मेदारी है की वह बाज़ार पर नज़र रखे कि  इस वृद्धि का कोई बेजा फायदा तो नहीं उठा रहा है. पर वर्त्तमान में ऐसा लगता है कि  सरकार के पास इसे चेक करने की कोई विधि नहीं है. लिहाजा  सरकार भी बाजारी ताकतों के आगे नतमस्तक हो जाती है और मुद्रास्फीति की दर लगातार उंची बनी रहती है. 


अब वक्त आ गया है कि रिजर्व बैंक और सरकार मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति के अलावा कोई और विकल्प तलाशे तभी आम लोगों को बध्तियो महंगाई दर से छुटकार मिल सकता है.

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